चुप्पी और आईना ( दोपहर के सन्दर्भ में )
By Prashant Kumar Sinha· Saturday, June 18, 2011
धूल सनी धूप
और पर फैलाती अकेली परछाइयाँ.
बचपन के किसी उदास दोपहर की
उदास यादें
आईना बन
घूमती हैं मेरे सामने .
आईने के अन्दर चुप्पी का साम्राज्य है ,
दोपहर की चुप्पी का .
रिस - रिस कर बाहर निकलता है
और मुझे शांत कर देता है
तब भी जब दोपहर ना हो .
चुप्पी संक्रामक होती है .
कभी आईना अपना मौन तोड़े
तो मैं भी अपने बाँध खोलूँ .