Monday, July 4, 2011

दूर झुरमुटों पे उदासी सी उतर आई है

हवा भी बोझल है , उदास है

तालाब सोया सा पड़ा है चादर तान के
शायद शाम होने वाली है .
चुप्पी और आईना ( दोपहर के सन्दर्भ में )
By Prashant Kumar Sinha· Saturday, June 18, 2011

धूल सनी धूप

और पर फैलाती अकेली परछाइयाँ.



बचपन के किसी उदास दोपहर की

उदास यादें

आईना बन

घूमती हैं मेरे सामने .



आईने के अन्दर चुप्पी का साम्राज्य है ,

दोपहर की चुप्पी का .

रिस - रिस कर बाहर निकलता है

और मुझे शांत कर देता है

तब भी जब दोपहर ना हो .



चुप्पी संक्रामक होती है .





कभी आईना अपना मौन तोड़े

तो मैं भी अपने बाँध खोलूँ .